चतुर चित्रकार और चंद्रमा का प्रतिबिंब – Hindi Moral Story

भारत के एक छोटे से कस्बे में एक पाठशाला थी जहाँ बहुत से बच्चे पढ़ते थे। उनमें रमेश नाम का एक चतुर चित्रकार भी था।

रमेश को चित्रकारी का शौक था। उसने जो कुछ भी देखा, उसका चित्र बनाया: पेड़, फूल, पक्षी और यहाँ तक कि चाँद भी।

एक दिन, शिक्षक ने एक चित्रकारी प्रतियोगिता की घोषणा की। “आपको कुछ सुंदर और सार्थक चित्रित करना चाहिए,” उसने कहा।

रमेश ने पानी पर चाँद का प्रतिबिम्ब बनाने का निश्चय किया। लेकिन इसे वास्तविक कैसे बनाया जाए? उसने विचार किया।

एक शाम घर जाते समय उसने देखा कि एक तालाब के पास एक गौरैया फड़फड़ा रही है। तालाब का पानी शांत और साफ था।

रमेश ने गौरैया का प्रतिबिम्ब पानी में देखा। यह गौरेया के रूप में ही ज्वलंत था। उसके पास एक विचार था!

वह गौरेया की तरह पानी में चंद्रमा के प्रतिबिंब को चित्रित करेगा। वह जल्दी से घर पहुंचा और चित्र बनाने लगा।

हर झटके के साथ चित्र जीवंत हो उठा। पानी पर चांद का प्रतिबिम्ब वास्तविक और जादुई लग रहा था।

अगले दिन रमेश अपनी चित्र को पाठशाला ले गया। उनका चित्र देखकर हर कोई हैरान रह गया। यह बहुत सजीव था!

शिक्षक प्रभावित हुआ। “रमेश, तुम्हारी चित्र अनूठी और विचारशील है,” उसने कहा। “आपने सिर्फ चाँद ही नहीं बल्कि उसके प्रतिबिम्ब को भी चित्रित किया है।”

रमेश मुस्कुराया और अपना अनुभव साझा किया। “मैं तालाब में गौरैया के प्रतिबिंब से प्रेरित था,” उन्होंने कहा।

रमेश की रचनात्मकता पर सभी ने तालियां बजाईं। उनकी पेंटिंग ने प्रतियोगिता जीती। हर कोई प्रकृति को देखने और उससे सीखने की उनकी क्षमता का कायल था।

तभी से रमेश को ‘चालाक पेंटर’ के नाम से जाना जाने लगा। उन्होंने सभी को सिखाया कि प्रकृति सबसे अच्छी शिक्षक है।

This Hindi Moral Story Says That:

अवलोकन और रचनात्मकता सरल चीजों को असाधारण कृतियों में बदल सकती है। अपने आसपास की दुनिया से हमेशा सीखते रहें।

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