बंदर और शेरनी की शिक्षाप्रद Hindi Moral Story में डूब जाइए। इस मनोरम कथा के माध्यम से मूल्यवान सबक और अंतर्दृष्टि प्राप्त करें।
बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव था जिसका नाम ब्रह्मपुरी था। वहाँ एक पुराना और विशाल मंदिर था। मंदिर के पुजारी के पास एक पालतू बंदर था, जिसे वह रोज़ अपने साथ मंदिर में ले जाता। यह बंदर बहुत ही शरारती था और सभी गाँववालों को बहुत प्यारा लगता था।
एक दिन पुजारी ने अपने बंदर को लेकर नहाने के लिए नदी में गया। नहाने के बाद बंदर, पुजारी के साथ वापस घर आते समय, एक नई शेरनी की दुकान के सामने रुक गया। बंदर ने शेरनी से एक केले का मांगा और वह उसे केला खाने को दे दी। केला खाने के बाद, बंदर अपने हाथ से सैरनी को नमस्ते करके चला गया।
यह सब बंदर की रोजमर्रा की आदत बन गई। एक दिन शेरनी ने सोचा कि आज उसे बंदर की शरारत करनी चाहिए। उसने बंदर को केला दिया और उसने बंदर के हाथ को छुए बिना एक बिल्ली को चिपका दिया। बंदर ने बिल्ली को महसूस किया और डर के मारे उछल पड़ा। सैरनी ने बंदर की बेचैनी को देखकर हँसी शुरू कर दी।
अगले दिन बंदर ने नदी में नहाकर कीचड़ अपने हाथों में ले लिया। वह फिर शेरनी की दुकान के सामने आया और उसने सैरनी की दुकान पर सारा कीचड़ फेंक दिया। सैरनी की सारी दुकान और वह स्वयं कीचड़ से भर गई।
बंदर ने देखा कि सैरनी बहुत परेशान हो गई है और वह उसे देखकर चला गया। शेरनी ने अपनी गलती को समझा और उसने सोचा कि वह आगे से किसी का मजाक नहीं उड़ाएगी।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमें किसी के साथ भी बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए, चाहे वह मजाक ही क्यों न हो। हमारी हरकतों के परिणाम हमें बाद में भुगतने पड़ सकते हैं।